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न नू॒नमस्ति॒ नो श्वः कस्तद्वे॑द॒ यदद्भु॑तम्। अ॒न्यस्य॑ चि॒त्तम॒भि सं॑च॒रेण्य॑मु॒ताधी॑तं॒ वि न॑श्यति ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

na nūnam asti no śvaḥ kas tad veda yad adbhutam | anyasya cittam abhi saṁcareṇyam utādhītaṁ vi naśyati ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

न। नू॒नम्। अस्ति॑। नो इति॑। श्वः। कः। तत्। वे॒द॒। यत्। अद्भु॑तम्। अ॒न्यस्य॑। चि॒त्तम्। अ॒भि। स॒म्ऽच॒रेण्य॑म्। उ॒त। आऽधी॑तम्। वि। न॒श्य॒ति॒ ॥ १.१७०.१

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:170» मन्त्र:1 | अष्टक:2» अध्याय:4» वर्ग:10» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:23» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब एकसौ सत्तरवें सूक्त का आरम्भ है। उसमें आरम्भ से प्रकारान्तर करके विद्वानों के गुणों का वर्णन करते हैं ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यत्) जो (अन्यस्य) औरों को (सञ्चरेण्यम्) अच्छे प्रकार जानने योग्य (चित्तम्) अन्तःकरण की स्मरणात्मिका वृत्ति (उत) और (आधीतम्) सब ओर से धारण किया हुआ विषय (न) न (अभि, वि, नश्यति) नहीं विनाश को प्राप्त होता न आज होकर (नूनम्) निश्चित रहता (अस्ति) है और (नो) न (श्वः) अगले दिन निश्चित रहता है (तत्) उस (अद्भुतम्) आश्चर्यस्वरूप के समान वर्त्तमान को (कः) कौन (वेद) जानता है ॥ १ ॥
भावार्थभाषाः - जो जीवरूप होकर उत्पन्न नहीं होता और न उत्पन्न होकर विनाश को प्राप्त होता है, नित्य आश्चर्य गुण, कर्म, स्वभाववाला अनादि चेतन है, उसका जाननेवाला भी आश्चर्यस्वरूप होता है ॥ १ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः प्रकारान्तरेण विद्वद्गुणानाह ।

अन्वय:

हे मनुष्या यदन्यस्य सञ्चरेण्यं चित्तमुताधीतं नाभि विनश्यति नाद्य भूत्वा नूनमस्ति नो श्वश्च तदद्भुतं को वेद ॥ १ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (न) निषेधे (नूनम्) निश्चितम् (अस्ति) विद्यते (नो) (श्वः) आगामिदिने (कः) (तत्) (वेद) जानाति (यत्) (अद्भुतम्) आश्चर्य्यभूतमिव वर्त्तमानम् (अन्यस्य) (चित्तम्) अन्तःकरणस्य स्मरणात्मिकां वृत्तिम् (अभि) (सञ्चरेण्यम्) सम्यक् चरितुं ज्ञातुं योग्यम् (उत) अपि (आधीतम्) समन्ताद्धृतम् (वि) (नश्यति) अदृष्टं भवति ॥ १ ॥
भावार्थभाषाः - यो जीवो भूत्वा न जायते भूत्वा न विनश्यति नित्य आश्चर्यगुणकर्मस्वभावोऽनादिश्चेतनो वर्त्तते तस्य वेत्ताऽप्याश्चर्य्यभूतः ॥ १ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागील सूक्ताच्या अर्थाशी संगती जाणली पाहिजे. ॥

भावार्थभाषाः - जो जीवरूप बनून उत्पन्न होत नाही व त्याचा विनाशही होत नाही. नित्य आश्चर्य गुण, कर्म स्वभावाचा अनादि चेतन आहे त्याचा जाणणाराही आश्चर्यस्वरूप असतो. ॥ १ ॥